
सुबह के 7 बजे हैं, आप ऑफिस जा रहे हैं। सड़क पर ट्रैफिक का शोर, हॉर्न की आवाज़, और लोग अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त। अचानक आपकी नज़र सड़क के किनारे पड़ती है – एक कुत्ता, बेजान, एक गाड़ी के नीचे आकर मर चुका है। थोड़ी दूर एक छोटी सी चिड़िया, उसका पर टूटा हुआ, शायद मांझा में उलझकर ज़िंदगी हार गई। आपका दिल एक पल के लिए रुक जाता है, थोड़ी सी सिहरन होती है। लेकिन क्या आप रुकते हैं? क्या कोई रुकता है? नहीं न। बस एक नज़र डाल के, हम सब आगे बढ़ जाते हैं। ये कहानी हर रोज़, हर सड़क पर दोहराई जाती है। लेकिन कोई कुछ क्यों नहीं करता?
ये ब्लॉग उन बेजुबान जानवरों के लिए है जो सड़कों पर अपनी जान गंवा देते हैं, और हमारी उदासीनता और सिस्टम की लापरवाही के शिकार बनते हैं। आज बात करते हैं उनकी, और देखते हैं कि ये समस्या कितनी बड़ी है, और हम इसके लिए क्या कर सकते हैं। भारत में सड़कों पर जानवरों की मौत एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल पर्यावरण को प्रभावित करता है बल्कि हमारी मानवता को भी चुनौती देता है। आइए, इस लेख में हम विस्तार से समझते हैं कि हर साल सड़कों पर कितने जानवर मरते हैं, इसके कारण क्या हैं, और समाधान क्या हो सकते हैं।
भारत में हर साल सड़कों पर कितने जानवर मरते हैं? – एक चौंकाने वाला आंकड़ा
भारत में हर साल लाखों जानवर सड़कों पर, भूख से, बीमारी से, या किसी अन्य वजह से मर जाते हैं। सटीक आंकड़े मिलना मुश्किल है क्योंकि इस पर कोई ठीक-ठाक डेटा कलेक्शन नहीं होता। लेकिन कुछ अनुमानों और रिपोर्ट्स के हिसाब से ये नंबर्स दिल दहला देने वाले हैं। सड़क दुर्घटनाओं में जानवरों की मौत भारत की तेज़ी से बढ़ती शहरीकरण और ट्रैफिक की समस्या का सीधा नतीजा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां सड़क हादसों में जानवरों की संख्या बहुत अधिक है। आइए, विभिन्न प्रकार के जानवरों पर नज़र डालें:
- स्ट्रे डॉग्स (घुमंतू कुत्ते): भारत में लगभग 3.6 करोड़ स्ट्रे डॉग्स हैं, और एक अनुमान के मुताबिक हर साल 10-15 लाख कुत्तों की मौत होती है। इसमें रोड एक्सीडेंट्स, भूख, और बीमारियां जैसे रेबीज़ या पैरोवायरस शामिल हैं। नागपुर में ही 2019 में 4 महीनों में 767 डॉग्स रोड एक्सीडेंट्स में घायल हुए, जिनमें से 30% की मौत हो गई। सोर्स नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट्स भी बताती हैं कि स्ट्रे एनिमल्स से जुड़े हादसे बढ़ रहे हैं, खासकर महानगरों जैसे मुंबई, दिल्ली और बैंगलोर में।
- कैट्स (घुमंतू बिल्लियां): स्ट्रे कैट्स की संख्या भी करोड़ों में है। हर साल लगभग 5-7 लाख कैट्स मरते हैं, ज्यादातर रोड एक्सीडेंट्स, भूख, या जहर के कारण। नागपुर के ही डेटा में 4 महीनों में 160 कैट्स घायल बताए गए। सोर्स ये आंकड़े बताते हैं कि शहरी इलाकों में कैट्स की आबादी बढ़ रही है, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।
- बर्ड्स (पक्षी): पक्षियों की मौत का एक बड़ा कारण मांझा (पतंग की डोरी) और प्रदूषण है। हर साल मकर संक्रांति के समय, हजारों पक्षी जैसे कबूतर, चील, और गरुड़ मांझे में उलझकर मर जाते हैं। एक स्टडी के अनुसार, भारत में प्रदूषण और हैबिटेट लॉस के कारण 10-12% बर्ड पॉपुलेशन हर साल कम हो रही है। सोर्स बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की रिपोर्ट्स में भी उल्लेख है कि शहरीकरण से पक्षियों के लिए रहने की जगह कम हो रही है, जिससे सड़कों और बिजली के तारों पर उनकी मौत बढ़ रही है।
- काउज़ (गायें): हमारे देश में गाय को पवित्र माना जाता है, लेकिन विडंबना ये है कि प्लास्टिक प्रदूषण उनकी जान ले रहा है। अनुमानों के हिसाब से हर साल 5-7 लाख गायें प्लास्टिक खाकर या उसमें फंसकर मरती हैं। एक केस में एक हाथी के पेट में 750 किलो प्लास्टिक मिला था! सोर्स प्लास्टिक काउ प्रोजेक्ट की स्टडीज दिखाती हैं कि उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में ये समस्या और गंभीर है, जहां खुले में कचरा फेंका जाता है।
- अन्य जानवर: सांप, खरगोश, मोर जैसे जंगली जानवर भी सड़कों पर मरते हैं। WWF इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हाईवे पर वन्यजीवों की मौत 20% सालाना बढ़ रही है, खासकर टाइगर रिजर्व के आसपास।
ये नंबर्स सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा हैं। हकीकत में ये और भी ज्यादा हो सकते हैं क्योंकि बहुत सी मौतें अनरिपोर्टेड रहती हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्ट्रे एनिमल्स की समस्या 2030 तक दोगुनी हो सकती है अगर कंट्रोल न किया गया।
सड़कों पर जानवरों की मौत के कारण – गहराई से समझें
सड़कों पर जानवरों की मौत के पीछे कई वजहें हैं, और ये सब आपस में जुड़ी हुई हैं। आइए, इन्हें ब्रेक डाउन करते हैं ताकि समस्या की जड़ तक पहुंच सकें। भारत की तेज़ ट्रैफिक ग्रोथ और अनियोजित शहरीकरण इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
रोड एक्सीडेंट्स: सबसे बड़ा खतरा
भारत का रोड नेटवर्क बहुत बड़ा है, और ये वाइल्डलाइफ कॉरिडॉर्स से भी गुजरता है। स्ट्रे डॉग्स, कैट्स, और पशुधन अक्सर गाड़ियों के नीचे आ जाते हैं। खराब लाइटिंग, ओवरस्पीडिंग, और लापरवाह ड्राइविंग इसके मुख्य कारण हैं। नागपुर में 2011-2019 के बीच 11,915 स्ट्रे एनिमल्स रोड एक्सीडेंट्स में घायल हुए। सोर्स हाई कोर्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर एनिमल क्रॉसिंग के लिए अंडरपास बनाने की ज़रूरत है, लेकिन ये सुविधाएं न के बराबर हैं। रात के समय हेडलाइट्स की कमी से छोटे जानवरों की मौत और बढ़ जाती है।
बीमारी और भूख: अनदेखी की मार
स्ट्रे एनिमल्स को सही खाना या मेडिकल केयर नहीं मिलता। रेबीज़, पैरोवायरस, और कुपोषण से लाखों जानवर हर साल मरते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 20,000 लोग हर साल रेबीज़ से मरते हैं, और इसका मुख्य वेक्टर स्ट्रे डॉग्स हैं। सोर्स पशु चिकित्सा विभाग की स्टडीज दिखाती हैं कि वैक्सीनेशन प्रोग्राम्स अपर्याप्त हैं, जिससे बीमारियां फैलती रहती हैं। भूख के कारण जानवर सड़कों पर भटकते हैं, जहां खतरा और बढ़ जाता है।
कचरा और प्लास्टिक: घातक जाल
खुले कचरा बिन्स जानवरों के लिए मौत के फंदे हैं। गायें और डॉग्स प्लास्टिक खा लेते हैं जो उनके पेट में जमा हो जाता है, और धीरे-धीरे उनकी मौत का कारण बनता है। प्लास्टिक काउ प्रोजेक्ट के अनुसार, एक गाय के पेट में इतना प्लास्टिक होता है कि वो हेल्दी दिखती है, लेकिन अंदर से मर रही होती है। सोर्स भारत में सालाना 1.5 लाख टन प्लास्टिक वेस्ट प्रोड्यूस होता है, जिसका बड़ा हिस्सा खुले में फेंका जाता है। इससे न केवल गायें बल्कि समुद्री जीव भी प्रभावित होते हैं।
मौसम की मार: क्लाइमेट चेंज का असर
एक्सट्रीम वेदर जैसे हीटवेव्स, बाढ़, या भारी बारिश जानवरों के लिए खतरनाक होते हैं। पक्षी और छोटे जानवर एक्सट्रीम टेम्परेचर्स से सर्वाइव नहीं कर पाते। क्लाइमेट चेंज ने ये समस्या और बढ़ा दी है। सोर्स आईपीसीसी की रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत में गर्मी की लहरों से स्ट्रे एनिमल्स की मौत 15% बढ़ गई है। सूखे इलाकों में पानी की कमी से जानवर दूर-दूर भटकते हैं और सड़कों पर आ जाते हैं।
मांझा और पतंगबाज़ी: उत्सव की कीमत
मकर संक्रांति के दिनों में मांझे से हजारों पक्षी हर साल मरते हैं। ये तेज़ डोरियां उनके पंखों या गले में फंस जाती हैं, और दर्दनाक मौत का कारण बनती हैं। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) ने चाइना मांझे पर बैन लगाया है, लेकिन अमल कमज़ोर है। मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में हर साल 5000 से ज्यादा पक्षियों की मौत मांझे से होती है।
अन्य कारण: शहरीकरण और प्रदूषण
शहरी फैलाव से जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे वे सड़कों पर आते हैं। वायु प्रदूषण से सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं, खासकर पक्षियों में। एक स्टडी के अनुसार, दिल्ली में एयर पॉल्यूशन से 20% पक्षी प्रभावित हैं।
सरकार और जनता की भूमिका – या उसके अभाव की
ये सब पढ़कर शायद आप सोच रहे होंगे, “इतना बड़ा इश्यू है, सरकार कुछ क्यों नहीं करती?” सच तो ये है कि सरकार के पास न तो ठीक पॉलिसीज़ हैं, न ही फंड्स। एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) रूल्स 2001 के अनुसार, स्ट्रे डॉग्स को मारना इललीगल है, सिर्फ स्टेरलाइज़ किया जा सकता है। लेकिन म्यूनिसिपैलिटीज़ के पास न तो बजट है, न ही प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर। रिजल्ट? स्ट्रे डॉग पॉपुलेशन बढ़ता जा रहा है, और उनकी मौत भी। सोर्स
केंद्र सरकार ने 2023 में स्ट्रे एनिमल मैनेजमेंट पर नई गाइडलाइंस जारी कीं, लेकिन स्टेट लेवल पर अमल कम है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार निर्देश दिए हैं कि हाईवे पर एनिमल क्रॉसिंग साइन बोर्ड लगाए जाएं, लेकिन ग्राउंड लेवल पर बदलाव न के बराबर है।
और हम, जनता?
हम भी कहां पीछे हैं। अक्सर लोग सड़क पर घायल जानवर को देखकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। अवेयरनेस की कमी, और “ये मेरा काम नहीं” वाला एटीट्यूड इस प्रॉब्लम को और बढ़ा देता है। जब तक हम खुद को रिस्पॉन्सिबल नहीं समझेंगे, ये साइकल चलता रहेगा। सोशल मीडिया पर #SaveStreetAnimals जैसे कैंपेन चल रहे हैं, लेकिन रियल एक्शन की कमी है।
एक छोटी सी कहानी: शिरो का सफर – दिल को छूने वाली दास्तान
चलो, एक छोटी सी कहानी सुनो। शिरो एक छोटा सा स्ट्रीट डॉग था, जो दिल्ली के एक व्यस्त मार्केट के पास रहता था। हर सुबह वो दुकानों के आगे दुम हिलाता, कुछ खाने के लिए। लोग उसे प्यार से थोड़ी रोटी या बिस्किट दे देते। एक दिन, रात के समय, एक तेज़ी से आती ट्रक ने शिरो को नहीं देखा। एक झटके में शिरो की ज़िंदगी खत्म। किसी ने उसके लिए एम्बुलेंस नहीं बुलाई, किसी ने उसकी मदद नहीं की। शिरो एक स्टैटिस्टिक बन गया – एक और स्ट्रे डॉग जो सड़क पर मर गया।
ये सिर्फ शिरो की कहानी नहीं है। ये हर उस जानवर की कहानी है जो सड़कों पर अपनी जान गंवाता है, और हम बस देखते हैं। ऐसी हजारों कहानियां हैं – एक घायल बंदर जो ट्रेन ट्रैक पर फंस गया, या एक कछुआ जो हाईवे पर कुचला गया। ये कहानियां हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि हमारा समाज कितना संवेदनशील है।
हम क्या कर सकते हैं? – प्रैक्टिकल सॉल्यूशंस
अब सवाल ये है – हम क्या कर सकते हैं? पैसे डोनेट करना ही एक सॉल्यूशन नहीं है। असली चेंज तब आएगा जब हम अवेयर होंगे और छोटी-छोटी चीज़ें करेंगे। आइए, स्टेप बाय स्टेप देखें:
- कचरा सेग्रीगेशन: अपना कचरा ठीक से डिस्पोज़ करें। प्लास्टिक को अलग रखें ताकि जानवर उसे न खा लें। घर में रिसाइक्लिंग बिन लगाएं और पड़ोसियों को भी सिखाएं।
- सावधानी से ड्राइव करें: सड़क पर धीरे चलाएं, खासकर रात के समय जब जानवर एक्टिव होते हैं। हेडलाइट्स चेक करें और स्पीड लिमिट फॉलो करें।
- इंजरीज़ रिपोर्ट करें: अगर कोई घायल जानवर दिखे, तो लोकल NGOs या एनिमल हेल्पलाइन्स को कॉल करें। जैसे, PETA की हेल्पलाइन 9820122602।
- अवेयरनेस फैलाएं: अपने दोस्तों, फैमिली, और कम्युनिटी में एनिमल्स के राइट्स के बारे में बात करें। सोशल मीडिया पर शेयर करें, #BeTheChange जैसे हैशटैग यूज़ करें।
- स्टेरलाइज़ेशन सपोर्ट करें: अपने एरिया के स्ट्रे डॉग्स और कैट्स के स्टेरलाइज़ेशन प्रोग्राम्स को सपोर्ट करें। लोकल म्यूनिसिपल को प्रेशर डालें कि ABC प्रोग्राम चलाएं।
- प्लास्टिक यूज़ कम करें: सिंगल-यूज़ प्लास्टिक अवॉइड करें। क्लॉथ बैग्स यूज़ करें और दूसरों को भी प्रोत्साहित करें।
- एनिमल शेल्टर्स विज़िट करें: वॉलंटियर बनें या डोनेट करें। इससे आपको समस्या की गहराई समझ आएगी।
ये छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। अगर हर व्यक्ति एक जानवर की मदद करे, तो लाखों ज़िंदगियां बच सकती हैं।
एनजीओज़ जो जानवरों के लिए काम कर रहे हैं – जॉइन करें इनके प्रयासों में
अगर आप मदद करना चाहते हैं, तो ये कुछ प्रमुख एनजीओज़ हैं जो जानवरों के लिए काम कर रही हैं। इनके साथ जुड़कर आप डायरेक्ट इम्पैक्ट क्रिएट कर सकते हैं:
PETA India
PETA इंडिया एनिमल क्रुएल्टी को रोकने और वीगन लाइफस्टाइल प्रमोट करने के लिए कैंपेन चलाता है। ये एनिमल्स के लिए लीगल एक्शन्स भी लेता है जैसे कि सर्कसेज़, मीट इंडस्ट्री, और लैब टेस्टिंग के खिलाफ। दिल्ली और मुंबई में उनके रेस्क्यू सेंटर्स हैं।
वेबसाइट: https://www.petaindia.com
Help Animals India
ये एनजीओ स्ट्रीट एनिमल्स के लिए रेस्क्यू, रिहैबिलिटेशन और ट्रीटमेंट प्रोवाइड करता है। ये इंडिया के स्मॉल एनिमल शेल्टर्स को सपोर्ट करता है, खासकर जहां रिसोर्सेज़ कम होते हैं। वॉलंटियर्स के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स भी चलाता है।
वेबसाइट: https://www.helpanimalsindia.org
The Plastic Cow Project
ये प्रोजेक्ट प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित गायों को बचाने के लिए काम करता है। कैंपेन और लीगल पेटिशन्स के ज़रिए प्लास्टिक बैग्स को बैन करवाने और लोगों को एजुकेट करने का काम करता है। स्कूल्स में अवेयरनेस वर्कशॉप्स आयोजित करता है।
वेबसाइट: https://plasticcow.org
World Animal Protection India
ये एनजीओ ग्लोबल लेवल पर वाइल्डलाइफ, फार्म एनिमल्स, और डिज़ास्टर-अफेक्टेड एनिमल्स के लिए काम करता है। इनका फोकस टूरिस्ट क्रुएल्टी (जैसे एलीफेंट राइड्स) और मीट कंजम्प्शन को रिड्यूस करना भी है। फ्लड रिलीफ में एक्टिव रहता है।
वेबसाइट: https://www.worldanimalprotection.org.in
FIAPO (Federation of Indian Animal Protection Organisations)
FIAPO इंडिया के 300+ एनिमल एनजीओज़ का फेडरेशन है जो एनिमल राइट्स, प्लांट-बेस्ड लिविंग और गवर्नमेंट पॉलिसी लेवल पर अवेयरनेस स्प्रेड करता है। इनका वीगन इंडिया मूवमेंट बहुत पॉपुलर है। पॉलिसी एडवोकेसी में मजबूत।
वेबसाइट: https://fiapo.org
इन एनजीओज़ से जुड़ें, डोनेट करें, या वॉलंटियर बनें। आपका एक छोटा योगदान बड़ी तब्दीली ला सकता है।
निष्कर्ष: अब रुकना नहीं, बदलना है – सड़कों पर जानवरों की मौत रोकें
ये ब्लॉग पढ़कर शायद आपका दिल थोड़ा भारी हो गया हो। लेकिन ये भारी दिल ही चेंज ला सकता है। हर साल लाखों जानवर सड़कों पर मरते हैं, और हम सब इसमें हिस्सा बनते हैं – अपनी उदासीनता से, अपनी लापरवाही से। अब वक्त है कि हम अपनी सोच बदलें। न सिर्फ गवर्नमेंट, न सिर्फ एनजीओज़, बल्कि हम सबको अपना रोल निभाना होगा। एक छोटी सी शुरुआत – एक घायल जानवर को हेल्प करना, प्लास्टिक यूज़ कम करना, या बस अवेयरनेस फैलाना – ये सब बड़ा डिफरेंस ला सकता है।
भारत में सड़कों पर जानवरों की मौत को रोकने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे। अगर हम आज नहीं जागे, तो कल ये समस्या और विकराल हो जाएगी। तो आज से प्रॉमिस करो – अगली बार जब सड़क पर एक बेजान जानवर दिखे, तो बस नज़र नहीं फेरोगे। रुकोगे, सोचोगे, और कुछ करोगे। क्योंकि अगर हम नहीं बदलेंगे, तो ये सड़कों पर मरते जानवरों का सिलसिला कभी नहीं रुकेगा। चलो, एक नई शुरुआत करते हैं – बेजुबानों के लिए आवाज़ उठाते हैं।
भारत में हर साल सड़कों पर कितने जानवर मरते हैं?
भारत में हर साल लाखों जानवर सड़कों पर मरते हैं। अनुमानों के अनुसार, 10-15 लाख स्ट्रे डॉग्स, 5-7 लाख कैट्स, और 5-7 लाख गायें रोड एक्सीडेंट्स, भूख, बीमारी, या प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मरते हैं। इसके अलावा, हजारों पक्षी मांझे और प्रदूषण की वजह से मरते हैं। सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि इस पर व्यवस्थित डेटा कलेक्शन नहीं होता।
सड़कों पर जानवरों की मौत का मुख्य कारण क्या है?
सड़कों पर जानवरों की मौत के मुख्य कारणों में रोड एक्सीडेंट्स, भूख, बीमारियां (जैसे रेबीज़ और पैरोवायरस), प्लास्टिक प्रदूषण, मांझा, और एक्सट्रीम वेदर शामिल हैं। लापरवाह ड्राइविंग, खराब लाइटिंग, और खुले कचरे की वजह से ये समस्या और बढ़ती है।
प्लास्टिक प्रदूषण जानवरों को कैसे प्रभावित करता है?
प्लास्टिक प्रदूषण जानवरों, खासकर गायों और स्ट्रे डॉग्स के लिए घातक है। खुले कचरे में प्लास्टिक खाने से ये उनके पेट में जमा हो जाता है, जिससे धीरे-धीरे उनकी मौत हो जाती है। अनुमान है कि हर साल 5-7 लाख गायें प्लास्टिक खाने की वजह से मरती हैं।
मकर संक्रांति के दौरान पक्षियों की मौत कैसे होती है?
मकर संक्रांति के दौरान पतंगबाज़ी में इस्तेमाल होने वाला मांझा पक्षियों के लिए खतरनाक होता है। ये तेज़ डोरियां उनके पंखों या गले में फंस जाती हैं, जिससे हजारों पक्षी जैसे कबूतर, चील, और गरुड़ हर साल मरते हैं।
सड़कों पर जानवरों की मौत रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?
भारत में एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) रूल्स 2001 के तहत स्ट्रे डॉग्स को मारना गैरकानूनी है, और स्टेरलाइज़ेशन प्रोग्राम्स चलाए जाते हैं। हालांकि, अपर्याप्त बजट और इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण ये प्रोग्राम्स प्रभावी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईवे पर एनिमल क्रॉसिंग साइन बोर्ड लगाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अमल कमज़ोर है।
हम सड़कों पर जानवरों की मौत को कैसे रोक सकते हैं?
सड़कों पर जानवरों की मौत रोकने के लिए कचरा सेग्रीगेशन, सावधानी से ड्राइविंग, घायल जानवरों की रिपोर्टिंग, स्टेरलाइज़ेशन प्रोग्राम्स को सपोर्ट करना, और अवेयरनेस फैलाना जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। छोटे-छोटे प्रयास जैसे प्लास्टिक यूज़ कम करना भी बड़ा बदलाव ला सकता है।
क्या स्ट्रे डॉग्स की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है?
हां, स्ट्रे डॉग्स की आबादी को एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) प्रोग्राम्स के ज़रिए नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें स्टेरलाइज़ेशन और वैक्सीनेशन शामिल हैं। हालांकि, इसके लिए सरकार और जनता का सहयोग, फंडिंग, और जागरूकता ज़रूरी है।
कौन सी एनजीओज़ भारत में जानवरों की सुरक्षा के लिए काम करती हैं?
भारत में PETA India, Help Animals India, The Plastic Cow Project, World Animal Protection India, और FIAPO जैसी एनजीओज़ जानवरों की सुरक्षा, रेस्क्यू, और रिहैबिलिटेशन के लिए काम करती हैं। इनके साथ वॉलंटियरिंग या डोनेशन के ज़रिए आप मदद कर सकते हैं।
क्या प्लास्टिक बैन से जानवरों की मौत कम हो सकती है?
हां, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर बैन और कचरा प्रबंधन से जानवरों की मौत कम हो सकती है। प्लास्टिक काउ प्रोजेक्ट जैसे संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं। अगर लोग प्लास्टिक कम करें और कचरा सही डिस्पोज़ करें, तो गायों और अन्य जानवरों की जान बच सकती है।
सड़कों पर घायल जानवरों की मदद के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
अगर आपको सड़क पर कोई घायल जानवर दिखे, तो तुरंत लोकल एनजीओ या एनिमल हेल्पलाइन (जैसे PETA India की हेल्पलाइन 9820122602 को कॉल करें। जानवर को सुरक्षित जगह पर ले जाएं और प्राथमिक उपचार की कोशिश करें, अगर संभव हो। अवेयरनेस फैलाकर दूसरों को भी प्रोत्साहित करें।
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